हेली मारी गगन मण्डल हीन्दो गालियो,
घाल्यो चंपेला की डाल।
सुरत सुहागन हीन्दो दे रिया,
हीन्दे नकलंग नाथ।।1।।
झरणा जारो न ममता मार लो,
मारी जोड़ी का भरतार।
आयोड़ो ओसर लारा ले चालो।।टेर।।
हेली मारी केल कांटा के संग,
हिया कांटो केला ने खाय।
नुगरा मानस ने परमोदता,
पत सुगरा की जाय।।2।।
हेली मारी चोरी करग्या नर चोरड़ा,
वो धन गियो मती जाण।
के तो माथा का रण उतरिया,
कन हियो आसाण।।3।।
हेली मारी गगन मण्डल बाती जले,
सुरता बणी है कलाल।
पांच पचीस मल मद पीवे,
सहजा माडी मतवाल।।4।।
हेली मारी रतन राल्यो हाजी रेत में,
लोहा कन्चन होय।
अलपी होती घर वा साध ने,
कीदी नुगरा की लार।।5।।
हेली मारी तोला राणी तीन नर तार्या,
लालो साध सधीर।
असंग जुगा को जैसल चोरड़ो,
पल में कीदो पीर।।6।।