ऐसी आरती घट ही में कीजो।
राम रसायण निशदिन पीजो।।टेर।।
घट ही में पांच पचीसो पण्डा।
घट ही में जाग रही जोत अखण्डा।।1।।
घट ही में पाती रे फूल चढ़ावे।
घट ही में आतम देव मनावे।।2।।
घट ही में देवल घट ही में देवा।
घट ही में सहज करे मन सेवा।।3।।
घट ही में शंख सकल घन तूरा।
घट ही में प्रेम परस निज नूरा।।4।।
घट ही में गावे हरि का दासा।
घट ही में पावे पद परकाशा।।5।।
जन हरिराम राम घट माही।
बिन खोज्या कोई पावत नाही।।6।।