मत बणज्यो रे गुणचोर,मानो संता की।
सुण लो चारों ओर बोली जनता
की ।।टेर।।
बन में रहता महात्मा,
करे तपस्या भारी।
जंगल का सब आवे जनावर,
राखे सब की यारी।
रहवे बकरी के संग नाहर ।।1।।
सभी जनावर आते जाते,
करते मुनि से बात।
गांव का एक गडकड़ा,
रहवे मुनि के साथ।
नहीं करता फेल फितूर ।।2।।
एक दिन चीता आ गया,
कुत्ता का बण काल।
संत चरण में जा पड़ा,
जल्दी करो सम्माल।
मने चीता से राखो
बचार।।3।।
कहे संत सुण गडकड़ा,
मत दरपे मन माय।
मोटो चीतो बणाय दूं,
यो थने देख भाग जाय।
अब चीतो बणायो महाराज।।4।।
एक दिन उस जंगल में,
भूखा आ गया बाघ।
चीता पर रपट पड्यो,
भाग सके तो भाग।
चीतो संत शरण में जाय।।5।।
चीता को बाघ बणा दियो,
कृपा करी महाराज।
बड़ा बाघ को देखकर,
जंगली भागा बाघ।
बाघ करे मांस अहार।।6।।
बाघ हिरणो को खायकर,
सो गया कुटिया पास।
इतने में वहां आ पहूंचा,
हाथी एक विशाल।
गया बाघ संत की ओर।।7।।
बाघ को हाथी बणा दिया,
ऐसे संत सुजान।
जो बन का हाथी आया था,
वो भगा बचाकर जान।
हाथी मस्त फरे चहूं
ओर।।8।।
कुछ दिनों के बाद में,
वहां आया केशरी नाहर।
हाथी मुनि चरणा पड्यो,
बात बताई आर।
मुनि हाथी बणायो शेर।।9।।
एक दिन काल योग से,
शरभ आ गया एक।
खाना चाहे शेर को,
रहा शेर को देख।
सिंह गया शरण में
दौड़।।10।।
शरभ बणा दियो शेर को,
आया शरभ गया भाग।
संता के शरणे गिया,
किस्मत जावे जाग।
भाया पकड़ो धरम की
डोर।।11।।
शरभ मन में सोचियो,
संत बड़ा उपकारी।
बणा सकते मुझ से भी,
और किसी को भारी।
मैं मुनि को डालू मार
।।12।।
ध्यान लगाकर महात्मा,
जाण गये सब बात।
कुत्ता से चल बणा शरभ,
अब मेरी करता घात।
पाछो देऊ कुत्तो
बणाय।।13।।
शरभ से कुत्ता बणा दिया,
कहे मुनिजन बात।
दूध सांप ने पावता,
कदीयन सुधरे जात।
कहे भैरू लाल कर
जोड़।।14।।