जल की उतपत दाता जोध हिया वो,
धणी मारा जोध हिया वो।
हाड़ मांस रा सायरा करो न बिचारा रे जी।।1।।
भजन करे जो नर नरभे व्हिया,
गरू मारा सांचा व्हिया वो,
राम ने रटे ज्यारी सफल कमाई रे जी।।टेर।।
नौ नौ महीना दाता गरभ रमाया वो जी।
उठे कुण नर अन्न जल पूर्या रे जी।।2।।
कोल बचन कर बारे आयो रे।
घर का धन्धा में हरि भूल गयो वो जी।।3।।
पांच पांखड़ी का कंवल बणाया वो जी।
उठे मारो हंस विसराम लिया वो जी।।4।।
दोई कर जोड़ खींची कशनो बोल्या।
तीन जीवां की मुक्ति आपने भलाई रे जी।।5।।