लग्या शब्द गुरू रंग सो है संग सदाई,
समझ शब्द मिल दिल बिच अलख लखाई।।टेर।।
सतगुरू आदु सेण बतलाई,
पर्चा सूं पाया पिव मेरा मुझ मांही।
हुं हूति मेमत मान गुमान भरम भटकाई,
हुई खबर बरोबर खाख पाख लिव ल्याई।।1।।
हुइ लग्न में मगन लीन लिव लाई,
पाया पिव प्रेम परसाह प्राप्त पाई।
नित नित नवला नेह निभावे सांई,
संग सुखमना के घर पिव बितलाई।।2।।
जांका सुख अपार कहत न आई,
जोया बोलत ब्रह्म अरूप भर्मना नांही।
सूरत शब्द के संग परम पद पांई,
लिखमा कहे कोई सन्त सदा सुखदाई।।3।।