जोह्या रे साधो सत् शब्द तत् सार,
भागा भरम भरोसा आया, अवगत लेसी उधार।।टेर।।
मूल मेल सूंं समझ आई,
मिल गई शब्द मंझार।
समझ शब्द मिल लगन लगी तब,
शब्द किया विस्तार।।१।।
पलटिया पवन नाभ सूं देखो,
बंक दिशि उटत ओमकार।
बैठत सोहंं अर्ध उर्ध बिच,
दुर्स किया दीदार।।२।।
द्वादस दल बिच देव दरस्या,
उपज्या अनन्त विचार।
षट दशदल बिच ब्रह्म बोलत,
वांसू धरी इकतार।।३।।
रवि चंद्र संग शब्द की ताली,
सुन अनहद झणकार।
अनहद सुन धुन ध्यान धरया है,
शब्द सुण्या रणुकार।।४।।
जीव ज्या ज्योति रूम रूम बिच,
अब आयो इतबार।
समदृष्टि होय कोई लखे ''लिखमो'',
करणी घर करतार।।५।।