प्रहलाद कंवर ने राख नणद बाई,
चरणा की दासी।।टेर।।
एक दिन महल में जनम हुआ तो,
बहुत हुवा राजी।
थम्म थम्म में दीपक जोया,
दान दिया हाथी।।1।।
हंसती खेलती गई महल में,
झूठा लाड लडाती।
कहती भावज सुण मारी नणदल,
हटजा तू पाछी।।2।।
लाड लडाती मुखड़ो धोती,
हटवाड़ो गाती।
लेय प्रहलाद ने जलबा निकली,
दया नहीं आती।।3।।
कहती नणदल सुण मारी भावज,
मुझे दया नहीं आती।
हरणाकुश के दुष्ट जनमग्यो,
देबा दे फांसी।।4।।
कहे प्रहलाद सुणो मारी माता,
तू क्यू घबराती।
तुलसीदास आशा रघुबर की,
आपू आप मर जासी।।5।।