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गुण बहोत गणां लाठी में नर राख इसे नित हाथ में gun bahot gana laathi me nar rakh ise nit haath me

 

कुण्‍डली

लाठी में गुण बहुत है सदा राखिये संग,

गहरी नदी नाळा जहां तहां बचावे अंग।

तहां बचावे अंग जपटी कुत्‍ता को मारे,

दुश्‍मन दावागीर होय तिन्‍हे यह जारे।

कह गिरधर कविराय सुणो हो धुर के बाटी,

सब हथियार छोड़ हाथ में लीजे लाठी।।

 

भजन

 

नर राख इसे नित हाथ में,

गुण बहोत गणां लाठी में।।टेर।।

 

गहरी नदी मिले कोई नाल़ा,

उस टाईम में कोन रूखाला।

रोग दोग दे तुरत दिकाला,

साथ रहे दिन रात में।

चले टेक टेक माटी में।।1।।

 

रात बि‍रात एकेला जावे,

दुशमन दावागीर सतावे।

लाठी हो तो भय नहीं आवे,

मार संभल दे गात में।

मिल जाय जरख घाटी में।।2।।

 

मारग मिले श्‍वान हड़काया,

देख एकला जट कलपाया।

लाठी हो तो प्राण बचाया,

देय उछलकर टाट में।

जा भिड़े जाय जांटी में।।3।।

 

लाठी में गुण बहोत पियारे,

दुशमन सब लाठी से हारे।

हरनारायण कहता प्‍यारे,

लाठी राखो हाथ में।

मुख मोड़ चलो घाटी में।।4।।

जल ज‌इयो जिह्वा पापनी राम के नाम बिना रे JAL JAIYO JIVHA PAPNI RAM KE NAAM BINA RE

राम के नाम बिना रे मूरख  राम के नाम बिना रे, जल ज‌इयो जिह्वा पापनी, राम के नाम बिना रे ।।टेर।। क्षत्रिय आन बिना, विप्र ज्ञाण बिना, भोजन मान ...