साधू भाई निरगुण का पद झीणा।
सतगुरू साधन की लख युक्ति,
लखे संत परवीणा।।टेर।।
इन्द्रिया खोज सके नहीं कबहूं,
दृष्ठ मुष्ठ ते हीना।
मन वाणी गम कर कर थाके,
जप तप प्रपंच कीना।।1।।
पक्षी पंथ मीन का मारग,
या विधि लक्षण लीना।
निश्चय जाण परम पद गहिया,
रहिया नहीं गुण तीना।।2।।
सब में सता सकल से न्यारा,
रमज समझ कर चीन्हा।
आपो उलट समाया अपना,
द्वेत भरम से क्षीणा।।3।।
बोद स्वरूप अनामी चेतन,
निरवाणी सुख भीणा।
रामप्रकाश अचल धन साक्षी,
निज केवल मद छीना।।