धन गुरा रमज रेल चलाई,
धन सतगुरू कारीगर बणीया,
नो सौ नबज हिलाई।।टेर।।
काम क्रोध का जले कोयला,
अकल इंजन के माही।
पांचों भूप मोरचे अडिया,
गाड़ी ने खूब चलाई।।1।।
रजोगुण बाबू फोरमेन कहिये,
सतोगुण गारड थाई।
तमोगुण बाबू टिकट कण्डेक्टर,
तीनों ही सेण मिलाई।।2।।
एक सौ आवठ पच्चीस मुसाफिर,
अपना फार्म के मांई।
जैसो किरायो भर्यो टिकट को,
वाही जाय ठहराई।।3।।
समझ सिंगल दिया बिना गाड़ी,
आगे जाने नहीं पाई।
श्रवण हार दशो दिसी भळके,
तारू तार सुनाई।।4।।
रामहंस गरू पास लिखावे,
अपने फारम माही।
गोकलदास शरण सतगरू की,
कुछ भी धोखा नाही।।5।।