दुश्मन से रहो हुसियार
ज्ञानी कहग्या है।
थे मानो सभी नर नार पापी
बहग्या है।।टेर।।
काम्पल्य नगर का राजवी ,
ब्रह्मदत्त था नाम।
चिड़िया रहती पूजनी ,
अन्त:पुर निज धाम।
बोली सबकी समझणहार।।1।।
चिड़िया के बच्चा हुआ ,
रणवास
के माय।
उसी दिन राणी के,
कंवर हुआ
मन भाय।
दोनों साथ रहे दिन रात।।2।।
चिड़िया समन्दर तीर से ,
मीठे दो फल लाय।
दोनों बच्चे बैठकर ,
बड़े
प्रेम से खाय।
बड़ा हो गया राजकुमार।।3।।
एक दिन बच्चा लेकर ,
खेले
राजकुमार।
सूनी जगह जायकर ,
बच्चा दीना
मार।
नहीं रहा किसी का यार।।4।।
फल लेकर पूजनी ,
आ बैठी
रणवास।
मरा बेटा देखकर ,
भूली होश
हवास।
आंख्या बहे आंसू की धार।।5।।
राजकुंवर को देखकर,
चिड़िया रपटी दौड़।
बदला लेने के लिए,
आंख्या
लीनी फोड़।
कहवे क्षत्रिय संगत बेकार।।6।।
राजाजी राजी रहो ,
मैं चली
बन माय।
थारे महला रहणे से ,
बेटा
दिया मराय।
करणी का फल त्यार।।7।।
बदला तूने ले लिया ,
सुण ले चिड़िया बात।
गुस्सा सब ही छोड़कर ,
रहो
हमारे साथ।
मत करणा और विचार।।8।।
एक बार के झगड़े से भी ,
मती
करो विश्वास।
कहकर चलदी पूजनी ,
रही न
उनके पास।
कहे भैरू लाल विचार।।9।।