इण विध परमेश्वर भज प्राणी,
मन महरम हुवा मोज जब लागी लहर महर री जाणी।।टेर।।
सतगुरू मिलकर समझ बताई,
कर किरपा मेहरबानी।
गुरूका शब्द भेद घट भीतर,
उधड़ी अणभै वाणी।।1।।
परमेश्वर भज भांज भर्मना,
तज गर्व गरीबी आणी।
नेकी नखै निरख नारायण,
गुरू शब्दो सांच्याणी।।2।।
सकल रिजक पूरण परमेश्वर,
जीव जैसे परवाणी।
सम्मत बिमत शीरोरो साथे,
कीया पेलका जाणी।।3।।
राख भरोसो धर इकतारी,
दुनियां पति देवाणी।
दया कर देसी दुनिया पति,
जुगत मुक्त आफाणी।।4।।
उनका भजन कर भवसागर,
तिरिया भेद पद निर्वाणी।
कर करणी, करणी घर परस्या,
कुल कारण नही जाणी।।5।।
जिनकी हर लिव लागी है,
बड़ भागी गुरू वचनागम जाणी।
लिखमा अलख लखे जन,
गर्वा पूरा सत परवाणी।।6।।