देखो
रे इण माता धरण पर,
सांची
रचना है जल की।।टेर।।
बरस
पांचवा में इन्दर कोप्यो,
मेघमाल
बरसे हलकी।
ताम्बा
बरणी धरती तपगी,
घास
बिना तो गऊ बिलखी।।1।।
बरस
छटा में बादल गरज्यो,
देख
छटा दुनिया हरखी।
खाली
समदर छन में भरिया,
लाख
करोड़ नदिया खलगी।।2।।
जस
से घास तुरत जम जावे,
उत्पत
है सब ही जल की।
जल
में हाल शकरवा निपजे,
जल
से देही बनी है नर की।।3।।
जल
बिन दुनिया व्याकुल हो रही,
याद
रही नहीं है गांवन की।
दु:ख
में ताव शीतला दीना,
हो
गई ढेरी कंकर की।।4।।
जल
में जादू राव विराजे,
जल
पर थाप थपी थल की।
नन्दराम
गुण गावे गुरा का,
जल
से नींव लगी घर की।।5।।