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हंसा दुरमति छोड़ दे रे प्‍यारा होय निरमल घर आव hansa durmati chod de re pyara bhajan lyrics

 

हंसा दुरमति छोड़ दे रे प्‍यारा,

होय निरमल घर आव ।।टेर।।

 

दूध से दही होत है रे प्‍यारा,

दही मथ माखन आय ।

माखन से घीरत होत है रे प्‍यारा,

वो नहीं छाछ समाय ।।1।।

 

सांटे से गुड़ होत है रे प्‍यारा,

गुड़ से शक्‍कर होय ।

शक्‍कर से चीनी होत है रे प्‍यारा,

गुरू मिले मिश्री होय ।।2।।

 

चीनी छिटकी रेत में रे प्‍यारा,

गज मुख चुगी नहीं जाय ।

अंग पलट झीणा होत है रे प्‍यारा,

होय कीड़ी चुग जाय ।।3।।

 

दागो लागे शील को रे प्‍यारा,

सौ मण साबू नहीं धोय ।

बार बार प्रमोदिये रे प्‍यारा,

कौआ हंसा नहीं होय ।।4।।

 

आप मनोरा होत है रे प्‍यारा,

बचन फिरे चौबार ।

कहत कबीर धर्मीदास ने रे प्‍यारा,

वो री अगम अपार ।।5।।

मुख से राम नाम ना रटे नांव में नदिया डूबी जाय mukh se Ram naam na rate naav me nadiya dubi jaay

 

मुख से राम नाम ना रटे,

नांव में नदिया डूबी जाय ।।टेर।।

 

चींटी चली अपने सासरे,

नौ मण काजल गाल ।

ऊंट अपने बगल में लीदा,

हाथी लिया लटकाय ।।1।।

 

एक अचम्‍भो ऐसो देख्‍यो,

गधा के दो सींग ।

चींटी के गले रस्‍सा बांधा,

खींचत अरजुन भीम ।।2।।

 

एक अचम्‍भो ऐसो देख्‍यो,

बन्‍दर दूहे गाय ।

दूध दूध तो खुद ही पीग्‍या,

घी यो बनारस जाय ।।3।।

 

एक अचम्‍भो ऐसो देख्‍यो,

मुर्दा रोटी खाय ।

आंखों वाले भटकट डोले,

अंधो भागो जाय ।।4।।

 

एक अचम्‍भो ऐसो देख्‍यो,

कुए में लग गई लाय ।

पानी पानी जल गया जी,

मछली खेले फाग ।।5।।

 

कहत कबीर सुणो भाई साधो,

यह पद है निर्बाणी ।

जो यां पद को अरथ जाण ले,

है बैकुण्‍ठ निशाणी ।।6।।

 

भरोसे आपके चाले ओ सतगुरू म्‍हारी नांव bharose aapke chale satguru mari naav bhajan lyrics

 भरोसे आपके चाले ओ,

सतगुरू म्‍हारी नांव।

सतगुरू म्‍हारी नांव बापजी,

धिनगुरू म्‍हारी नांव।।टेर।।

 

नहीं है म्‍हारे कुटुम्‍ब कबीलो,

नहीं म्‍हारे परिवार।

आप बिना दूजो नहीं दीखे,

जग में पालनहार।।1।।

 

भवसागर ऊण्‍डो गणो ने,

तिरूं न उतरूं पार।

नगे करूं तो नजर न आवे,

भवसागर की धार।।2।।

 

सतगुरू रूपी जहाज बणालो,

इण विध उतरो पार।

सुरत चाटलो ज्ञान बांचलो,

खेवट सिरजनहार।।3।।

 

कहे कबीर सुणो भाई साधू,

इण विध उतरो पार।

रामानन्‍द मिल्‍या गुरू पूरा,

बेड़ा कर दिया पार।।4।।




हंसा निकल गया काया से खाली पड़ी रहे तस्‍वीर hansa nikal gayo kaya se khali padi rahe tasveer

दोहा: राम नाम की लूट है, लूट सके तो लूट।

अन्‍त काल पछतायेगा, जब प्राण जायेगा छूट।।

 

हंसा निकल गया काया से,

खाली पड़ी रहे तस्‍वीर।।टेर।।

 

जम के दूत लेने आवे,

नेक धरे नहीं धीर।

मार मार कर प्राण निकाले,

ढरे नयन से नीर।।1।।

 

बहुत मनाये देवी देवता,

कोई बहुत मनाये पीर।

अन्‍त समय कोई काम न आवे,

जाणा पड़े आखिर।।2।।

 

कोई नहलावे कोई धुलावे,

कोई ओढ़ावे चीर।

चार जणा मिल मतो उपायो,

ले गये जमना / मरगट तीर।।3।।

 

माल मुलक की कोन चलावे,

संग नहीं चले रे शरीर।

जाय जंगल में चिता चुणाई,

कह गये दास कबीर।।4।। 



कूड़ा बोले ज्‍यारो कई पतियारो रे kuda bole jyaro kai patiyaro re

 

कूड़ा बोले ज्‍यारो कई पतियारो रे।।टेर।।

 

नट गयो तेल बुझ गयो दिवलो,

मंदर में भयो घोर अंधारो रे।।1।।

 

ढस गई नींव उखड़ गई टाटी।

माटी में मिल गयो गारो रे।।2।।

 

थू तो केतो थारे संग चालस्‍यू,

आखिर हो गयो न्‍यारो रे।।3।।

 

लेय कटोरो शहर में चाल्‍यो,

नहीं मिल्‍यो तेल उधारो रे।।4।।

 

लद गियो ढाड़ो उठ गयो बणजारो,

जातो कियो ललकारो रे।।5।।

 

कह कबीर सुणो भाई साधू,

उठ चल्‍यो साहूकारो रे।।6।।




दलाली हीरा लाल की जी मारा सतगरू दीनी रे बताय dalali hira lal ki mara satguru dini re batay

 

दलाली हीरा लाल की जी,

मारा सतगरू दीनी रे बताय।।टेर।।

 

लाल लाल सब कोई कहे,

सबके पल्‍ले लाल।

खोल पल्‍लो परखी नहीं,

भटकत फिरे है कंगाल।।1।।

 

लाल पड़ी बजार में,

खलक उलांग्या जाय।

आयो हीरा को पारखू,

चुपके से लीनी रे उठाय।।2।।

 

साध साध सब एक है जी,

ज्‍यूं  आपू का खेत।

कोइक करणी लाल है जी,

कोइक करणी सफेद।।3।।

 

सतगरू बैठा समंदरा,

नीर भर्यो अणतोल।

थू कोरो क्‍यू रह गयो,

ज्‍यूं पत्‍थर में टोल।।4।।

 

सतगरू मारा सूरमा,

दई सबद की चोट।

गोला भावे ज्ञान का,

तोड़े भरम का कोट।।5।।

 

आपो जाही आपदा,

सांसो ज्‍याही सोच।

कहे कबीर कैसे मिटे,

दोनो ये दिरग रोग।।6।।

गुरूदाता मैंने अवगुण बहुत कियो gurudata mene avgun bahut kiyo

 

गुरूदाता मैंने अवगुण बहुत कियो।।टेर।।

 

कतराई पांव दाता धरिया धरणी पर है।

पग पग पाप कियो ।।1।।

 

पेला की नार दाता,नैणा से नरखी है।

मनसा रा पाप कियो।।2।।

 

भरिया समन्‍द की दाता, पालां जो फोड़ी है।

मनवा ने मार लियो ।।3।।

 

बैठोड़ी गऊ के वो दाता, ठोकर मारी है।

मोहरा न  मार लिया।।4।।

 

पाप कपट की दाता,बांधी गठडिया है।

सिर पर बोझ धर्यो।।5।।

 

कहत कबीर सुणो भाई साधू।

सतगरू पार कियो।।6।।




तरीया कलजुग की महाराज केणो नहीं माणे खावन्‍द को tariya kaljug ki maraj keno nahi mane khavand ko

 

तरीया कलजुग की महाराज,

केणो नहीं माणे खावन्‍द को,

न माने परणिया को ।।टेर।।

 

ससुराजी को कहणो मानती,

यो मालिक है घर को।

सासूजी की चोटी पकड़ ने,

काम कराती घर को।।1।।

 

नणदल बेटी ऐसी बोले,

सामे लेवे लबरको।

सगा देवर पर ऐसी रपटे,

ज्‍यू माखन पर मनखो।।2।।

 

देराणी के पकड़ पछाटी,

जेठाणी के ठरगो।

सगा जेठ की मूंछ उपाड़ी,

मार्यो एक हचड़को।।3।।

 

घर का धणी तो ऊबे धूजे,

देख रांड को ठरको।

कहत कबीर सुणो भाई साधू,

घर घर में यो खलको।।4।।

हम लालन के लाल हमारे तन सूता ब्रह्म जागे है hum laalan ke laal hamare tan suta brahm jage he

 

सुण घर शहर,शहर घर बस्‍ती,

कुण सूता कुण जागे है।

हम लालन के,लाल हमारे,

तन सूता ब्रह्म जागे है।।टेर।।

  

जल बिच कंवल,कंवल बिच कलियां,

भंवर वासना लेता है।

पांचों चेला फिरे अकेला,

निरगुण का गुण गाता है।।1।।

 

जीवत जोगी माया जोड़ी,

मर्या पछे माया माणी है।

खोज्‍या खबर पड़े घट भीतर,

जोगाराम की बाणी है।।2।।

 

तपत कुण्‍ड पर तपसी तापे,

तपसी तपस्‍या करता है।

काछा लगोटा कुछ नहीं रखता,

खाली माला रटता है।।3।।

 

एक अपसरा आगे ऊबी,

दूजी सूरमो सारे है।

तीजी अपसरा सेज बिछावे,

परणी नहीं कुंवारी है।।4।।

 

परण्‍या पेली पुत्र जनमिया,

मात पिता मन भाया है।

रामानन्‍द का भणे कबीरा,

एक अखण्‍डी धाया है।।5।।

बना डोरी जल भरे कुवा पर बना शीश की पणिहारी bana dori jal bhare kuva par bana shish ki panihari

 

भो बिना खेत,खेत बिना बाड़ी,

जल बिना रहट चले भारी।

बना डोरी जल भरे कुवा पर,

बना शीश की पणिहारी।।टेर।।

 

शिर पर घड़ो घड़ा पर जारी,

ले घाघर घर क्‍यू चाली।

बीणती करू उतार बेवड़ो,

देखत ख्‍याली मुस्‍कानी।।1।।

 

बिना अन्‍जल के करे रसोई,

सासू नणद की वो प्‍यारी।

देखत भूख भगे स्‍वामी की,

चत्र नार की चतराई।।2।।

 

बिना धरणी एक बाग लगाया,

बना वृक्ष एक बेल चढ़ी।

बना शीश का खायक मुरगा,

बाड़ी में चुगता घड़ी घड़ी।।3।।

 

धनुष बाण ले चढ्यो शिकारी,

न धनुवे पर बाण चढ़ी।

मुरगा मार जमीं पर डारा,

ना मुरगा के चोट लगी।।4।।

 

कहे कबीर सुणो भाई साधू,

यह पद है कोई निरवाणी।

अणी भजन की करे खोजना,

वो ही संत है सुरज्ञानी।।5।।




मैं मस्‍ताना सकल दीवाना पाव पलक की है भक्ति main mastana sakal deewana paav palak ki he bhakti

 मैं मस्‍ताना सकल दीवाना,

पाव पलक की है भक्ति।

हीरो हार्या हीरो हाथ नहीं आवे,

शीश उतार लड़ो कुश्‍ती।।टेर।।

 

राजा सिवरे प्रजा सिवरे,

पल पल सिवरे पार्वती।

शेष पियाला में बासक सिवरे,

खोज न पावे पाव रती।।1।।

 

ओहं सोहं बाजा बाजे,

वां संता की या रीती।

चोबारा में दीपक जलता,

झलमल ज्‍योति वा जलती।।2।।

 

अनहद में तो आप बिराजो,

सब धणीयां की है गिणती।

पूंगलगढ़ में पखावज बाजे,

सब धणीया की है भगती।।3।।

 

साधू होय न घट माय हेरो,

बाहर कोई भटको रे मती।

कहत कबीर सुणो भाई साधू,

अलख रटे जो खरा जती।।4।।

बोले ज्‍यांरी खबर करो मारी हेली कूणी तो आवे रे कूणी जाय bole jari khabar karo mari heli kuni to aave re kuni jaay

 

बोले ज्‍यांरी खबर करो मारी हेली।

कूणी तो आवे रे कूणी जाय।।टेर।।

 

पानी को एक बरबड़ो जी,

धर्यो आदमी नाम।

कोल किया था भजन करण का,

आय बसायो गांव।।1।।

 

हस्ति छूटा ठाण से जी,

लस्‍कर पड़ी पुकार।

दस दरवाजा बन्‍द पड्या है,

निकल गयो जी असवार।।2।।

 

जैसा पानी ओस का जी,

वैसा ही संसार।

झिलमिल झिलमिल हो रही जी,

जात न लागे जी बार।।3।।

 

माखी बैठी सहत ऊपर,

पंख रही लपटाय।

कहे कबीर सुणो भाई साधू,

लालच बुरी जी बलाय।।4।।

मारा सतगरू आया है धन घड़ी है धन भाग mara satguru aaya hai dhan ghadi he dhan bhag

 सतगरू सायब कदी मलेला,

मन में गणी उम्‍मेद।

नेण जरे मारो हियो जो उबके,

ऊबी रे काग उड़ाय।।1।।

 

मारा सतगरू आया है।

धन घड़ी है धन भाग,

गरूजी रा दर्शण पाया है।।टेर।।

 

सतगरू आया मारे गोरमे जी,

हरचन्‍द सामा जाय।

कंचन भरलो जालिया जी,

जंगी रे ढोल गुर्राय।।2।।

 

सतगरू आया मारे बाग में जी,

सैया कलश बंधाय।

मोतिड़ा उतारू वांरी आरती जी,

सैया मंगल गाय।।3।।

 

सतगरू आया मारे द्वार में जी,

कई करू मनुवार।

शीश उतार धरू चरणां में,

तन मन अलपू मेरा प्राण।।4।।

 

सतगरू आया मारे चौक में जी,

गादी पलंग बिछाय।

चरण खोळ चरणामृत लेलो,

पीया अमर हो जाय।।5।।

 

सतगरू मुख से बोलिया जी,

अमृत वचन सुणाय।

कहे कबीर सुणो भाई साधू,

हंस मिल्‍या ही हंस होय।।6।।

सन्‍तों भगती सतगरू आनी नारी एक पुरूष दो जाया santo bhakti satguru aani naari ek purush do jaya

 

सन्‍तों भगती सतगरू आनी,

नारी एक पुरूष दो जाया,

बूझो पंडित ज्ञानी।।टेर।।

 

पत्‍थर फोड़ गंगा एक निकली,

चहुं दिस पाणी पाणी।

वां पाणी से दो पर्वत डूबे,

दरिया लहर समानी।।1।।

 

उड़ माखी तरवर को लागी,

बोले ऐके बाणी।

वां माखी के माखा नाहीं,

गर्भ रहा बिन पाणी।।2।।

 

नारी सकल पुरूष वे खाये,

ताते रहे अकेला।

कहे कबीर जो अबके बूझे,

सोई गुरू हम चेला।।3।।

संतो सतगरू अलख लखाया परम प्रकाश santo satguru alakh lakhaya pram prakash

 

संतो सतगरू अलख लखाया,

परम प्रकाश ज्ञान पूंज है,

घट भीतर दरसाया।।टेर।।

 

मन बुद्धि बाणी नहीं जानत,

वेद कहत सकुचाया।

अगम अपार अथाह अगोचर,

नेति नेति जेहि गाया।।1।।

 

शिव सनकादिक और ब्रह्मा के,

वह प्रभु हाथ नहीं आया।

व्‍यास वसिष्‍ठ विचारत हारे,

कोई पार नहीं पाया।।2।।

 

तिल में तेल काष्‍ठ में अग्नि,

व्रत तप माही समाया।

सबद में अरथ पदारथ पद में,

स्‍वर में राग सुणाया।।3।।

 

बीज में अंकुर तरू शाखा,

पत्र फूल फल छाया

ज्‍यूं आतम में परमातम,

ब्रह्म जीव अरू माया।।4।।

 

कहे कबीर कृपालु कृपा करि,

निज स्‍वरूप परखाया।

जप तप योग यज्ञ व्रत पूजा,

सब जंजाल छूड़ाया।।5।।

बिन भजन ज्ञान मिले कहो कैसे हिन्‍दू तुरक दो दीन बने bin bhajan gyan mile kaho kese hindu turak do deen

 

बिन भजन ज्ञान मिले कहो कैसे,

हिन्‍दू तुरक दो दीन बने है,

आये एक ही घर से।।टेर।।

 

उनके माला इनके तस्‍बी,

चला करे कर कर से।

बिना गुरू के ज्ञान न पावे,

ध्‍यान धरो चाहे जैसे।।1।।

 

भटक भटक कर घर को आये,

रहेंगे जेसे के तेसे।

वे बकरी व गाय कटावे,

दया रहम नहीं दिल में।।2।।

 

सुन्‍नत कराये मूछा रखाये,

काहे भये गरभे से।

कहे कबीर दोऊ दीन भूला ने,

बेर करे रब रब से।।3।।

गुरू से लगन कठिन है भाई जीव परलय होय जाई guru se lagan kathin hai bhai jeev pralay hoy

 

गुरू से लगन कठिन है भाई,

लगन लगे बिन काम न सरिये,

जीव परलय होय जाई।।टेर।।

 

स्‍वाती बून्‍द को रटे पपीहा,

पिया पिया रट लाई।

प्‍यासे प्राण जात है अब ही,

और नीर नहीं भाई।।1।।

 

तज घर द्वार सती होय निकली,

सत्‍य करण को जाई।

पावक दे डरे नहीं तनिको,

कूद पड़े हरसाई।।2।।

 

दो दल आई जुड़े रण सामे,

सुरा लेत लड़ाई।

टूक टूक होय पड़े धरती पे,

खेत छोड़ नहीं जाई।।3।।

 

मिरगा नाद सबद के भेदी,

सबद सुनन को जाई।

सोई सबद सुण प्राण दान दे,

नेक न मग ही डराई।।4।।

 

छोड़ो अपने तन की आशा,

निर्भय होय गुण गाई।

कहे कबीर सुणो भाई साधो,

नहीं तो जनम नसाई।।5।।

जल ज‌इयो जिह्वा पापनी राम के नाम बिना रे JAL JAIYO JIVHA PAPNI RAM KE NAAM BINA RE

राम के नाम बिना रे मूरख  राम के नाम बिना रे, जल ज‌इयो जिह्वा पापनी, राम के नाम बिना रे ।।टेर।। क्षत्रिय आन बिना, विप्र ज्ञाण बिना, भोजन मान ...