मारा सतगरू आया है धन घड़ी है धन भाग mara satguru aaya hai dhan ghadi he dhan bhag

 सतगरू सायब कदी मलेला,

मन में गणी उम्‍मेद।

नेण जरे मारो हियो जो उबके,

ऊबी रे काग उड़ाय।।1।।

 

मारा सतगरू आया है।

धन घड़ी है धन भाग,

गरूजी रा दर्शण पाया है।।टेर।।

 

सतगरू आया मारे गोरमे जी,

हरचन्‍द सामा जाय।

कंचन भरलो जालिया जी,

जंगी रे ढोल गुर्राय।।2।।

 

सतगरू आया मारे बाग में जी,

सैया कलश बंधाय।

मोतिड़ा उतारू वांरी आरती जी,

सैया मंगल गाय।।3।।

 

सतगरू आया मारे द्वार में जी,

कई करू मनुवार।

शीश उतार धरू चरणां में,

तन मन अलपू मेरा प्राण।।4।।

 

सतगरू आया मारे चौक में जी,

गादी पलंग बिछाय।

चरण खोळ चरणामृत लेलो,

पीया अमर हो जाय।।5।।

 

सतगरू मुख से बोलिया जी,

अमृत वचन सुणाय।

कहे कबीर सुणो भाई साधू,

हंस मिल्‍या ही हंस होय।।6।।

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