साधू भाई अमल खाया दु:ख पासी।
अमलदार की संगत कीनी,
अमल खाबो सिखलासी।।टेर।।
खाय अमल सूरो बण बैठे,
सिंग ज्यूं गरजासी।
उतरे अमल रोवण लागो,
इन्द्रिया काम न आसी।।1।।
नाक जरे अन्न नहीं भावे,
तन सारो थक जासी।
इण व्यसन से दूर ही रहणो,
खावे जो पछतासी।।2।।
अमल तमाकू जोड़े होगी,
उठण लागी खांसी।
उमर सब वृथा खोय दी,
जमड़ा देवे फांसी।।3।।
गरू सुखरामजी सत्य कहे है,
सुण लो भारतवासी।
कामड़राम त्यागो दुर्व्यसन,
हो अमरापुर वासी।।4।।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें