साधू भाई दारू को दूर हटावो।
मानुष तन पाय समझ विचारो,
फिर पीछे पछतावो।।टेर।।
बहुत दु:खा से करो कमाई,
रात दिन भटकावो।
करी कमाई वृथा मत खोवो,
मोटो पाप कमावो।।1।।
पेट में गये प्राण घबरावे,
क्यू ऐसो रोग लगावो।
उल्टी करो गणां दु:ख पावो,
सुद बुद सब बिसरावो।।2।।
नशाबाजी की दशा देखकर,
अकल काम में ल्यावो।
घर त्रिया दे धुधकारो,
क्यूं धन को धूल उड़ावो।।3।।
दारूखोर जगत सब कहवे,
सोहबा कांई पावो।
कुत्ता वाक चाटण लागे,
सब ही लोग हंसावो।।4।।
गुरू सुखरामजी समर्थ दाता,
भिन्न भिन्न कर समझायो,
कामड़राम त्याग दारू को,
ज्ञान गंगा में न्हायो।।5।।
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