जीणी बाणी संत पिचाणी
आठ पेर हाजर रीज्यो।
अमरत- गत पर आप विराजे
पल-पल दर्शन कर लिज्यो ॥टेर॥
मुल कमल का मंजन करज्यो
भेद गुरा से सुण लिज्यो।
साड़ा तीन पेच फेरा कर
गुणपत देव मना लिज्या हो जी॥1॥
लगे कवल में हीरा निपजे
जवरी बिना ये मत दीज्यो।
नीत प्रलय की नगे राखज्यो
पार ब्रह्म परख लीज्यो हो जी ॥2॥
नाब कवल नीकलंग जीका
वासा पुरख पुरा भर लिज्यो।
मैरूदण्ड के छेदन करके
तार में तार मिला लिज्यों हो जी ॥3॥
हीरदा कुवल मे हरिजी ने पाया
सब्दा तरणा सौदा करज्यों।
मन भर मीलांया सायरा भलीयां
अमर बाता कर कीज्यों हो जी॥4॥
कंट कवल केसर की क्यारी
कली-कली रस किज्यो।
पीये प्याला संत मतवाला
मन माता मगन रीज्यो हो जी ॥5॥
तरबीणी में हैरो बैकरी
मुकमण के साथ रीज्यो।
छः सासा में सार मिला कर
जाकर डंका सुण लिज्यो हो जी ॥6॥
दसवा माये दर्शन करके
आगे पगलिया धर लिज्यों।
छम-छम मुन्दरी बोले
निरगुण माला भज लिज्यो हो जी ॥7॥
गोपी नाथ मिल्या गुरू पुरा
दुर्बल
पर दया करज्यो।
शंकरनाथ
गुरूजी के शरणे