देवल अजब देव देह मांही,
सन्त कोई शब्द विचारी।
धर इतबार आण इकबारी।।टेर।।
चलता देवल किया गुरूदाता,
जोड़ जुगत विधि सारी।
शक्ति सत्ता सूं रूप रंग रचियो,
नख नख शिख खूब संवारी।।1।।
सात तीन मिल पांच पचिसों,
गुरू कियो कला सूं तिहारी।
नव दस किया देव दरवाजा,
लिखी कर्म गत न्यारी।।2।।
पूजे सकल असल नहीं ओलखे,
आरती संज्या संवारी।
आदि पुरूष रे अखण्ड आरती,
अनहद पूरे अपारी।।3।।
अलख अरूप अपर छन्द बोले,
सत्ता सकल जग सारी।
खोजे शब्द पखे मन पर्बा,
देख्दे देव मुरारी।।4।।
ठावो ठीक कियो जड् चेतन,
लीला अगम अपारी।
लीला कोई लखे ''लिखमो'',
सीर धन बांका दीदारी।।5।।