खम्मा भली करी ओ गुरुदाता,
जीव राख्या चौरासी मू जाता।
भूलूं नहीं लाखा बातां ओ,
मारे राम भजन का ही नाता।।टेर।।
मैं कर्म गली मू आयो,
करमा में गाठो कलायो।
मैं अनी बनी में रहता,
माने गुरु बिन कोन जगाता।।1।।
गुरु आंख्या छता अंधियारा,
खोटा है भाग हमारा।
मैं पगां छता पांगलिया,
मेरा सतगुरु हेला सांभलिया।।2।।
गुरु मोह की नंदिया भारी,
मैं बह गया कितना बारी।
मारे सतगुरु पकडियो हाथा,
नी तो जातो गुडिन्दा खाता।।3।।
मैं धर्म गंगा में जाता,
माने गुरु बिना कौन नहाता।
मैं सत की संगत में आया,
स्वामी सिमरथ राम गुण गाया।।4।।