मन रे अगम पथ कूं बहिये,
है घर दूर पियाणा भारी ,
चलत चलत लैये।।टेर।।
अगम पंथ का अवघट घाटा,
अन्त अबै क्या कहिये।
कर प्रेम प्राण विश्वास साथ ले,
गुरू गम गेलो लैये।।1।।
कर्म भर्म का आड़ा भाखर,
चुर किस विध चलिये।
समझ शब्द की सेरी सूझेे,
भर्म भांज क्या डरिये।।2।।
माया बन बिच भूल भटक मत,
करणी को संग करिये।
भूला सो भवसागर बहाग्यो,
डर कर डां डीलैये।।3।।
आठ घाट बिच डर की डगरा,
संग शब्द चौडा बोलैय।
है ठग बहुत चेतो कर रहिये,
चौकस हो कर चलिये।।4।।
खरतर गेल खरा सन्त हाले,
घर खोज्या घट लैये।
कह ''लिखमो'' जिनकी बलिहारी,
हर चरणा चित लैये।।5।।