मैं सोऊ सतगरू थाके माई वो
जी,
सतगरू है मुझ माई सतगरू...।
काल क्रोध सकल भव नहीं वो जी,
निन्द्रा न आवे गुरा नेड़ी।।टेर।।
धरण गगन बचे कबहूं नहीं सोऊ वो जी,
देऊ मुरसद वाली फेरी।
नाम दवादस सूद कमाऊ वो जी,
उल्ट बंक दिशी घेरी।।1।।
दस दरवाजा बन्द कर सोऊ वो जी,
चुलगत मुलगत नाई।
पांच भूप पगा तले देऊ वो जी,
तीन गुणा की गम नाई।।2।।
मेरूदण्ड का मारग सीधा वो जी,
सोहं सबद गरणाई।
ओम सबद निज डोरी लागी जी,
सहज अकीशा पाई।।3।।
सूता पछे कबहू नहीं जागू जी,
लुट जावो लंका भलाई।
इन्दर लोक स्वर्ग लुट जावो जी,
धरण गगन डग जाई।।4।।
बचन पाले जाणे साधू कहिये जी,
जनम मरण मट जाई।
कहे कबीर किसी को गम नाही वो जी,
मेरी वो गम मुझ माही।।5।।