न्हाया धोया हर ना मले रे साधू भाई,
हर कोई लेवे न्हाय।
नत न्हावे जल की माछली रे,
साधू भाई कद अमरापुर पाय।।1।।
नखरो छोड़ दे रे साधू भाई।
असल फकीरी धार।।टेर।।
जटा बढ़ाया हर ना मले रे,
साधू भाई हर कोई लेवे बढ़ाय।
जटा बढ़ावे बन की रीछड़ी रे,
साधू भाई कद अमरापुर पाय।।2।।
भभूती लगाया हर ना मले रे,
साधू भाई हर कोई लेवे लगाय।
गधो लोटे नत राख में,
साधू भाई कद अमरापुर पाय।।3।।
पत्थर पूज्या हर ना मले रे,
साधू भाई हर कोई लेवे रे पूजाय।
इससे तो चक्की भली रे,
साधू भाई पीस खाय संसार।।4।।
बड़ के हीन्दो गालियो रे,
साधू भाई तले लगाई लाय।
कहे कबीरा धर्मीदास ने,
साधू भाई हर भज उतरो पार।।5।।