बैठ
सभा के बीच,
भेद
बतलादे सतसंगी ।।टेर।।
नया
शहर से चला अचम्भा,
पांच
बण्या पारस का थम्मा।
आठ
गांव बत्तीस मोहल्ला,
बच
में है खण्डी ।।1।।
बिन
धरणी इक बाग लगाया,
बिन
माली सींचण को आया।
अणी
बाग की अजब सैल है,
फूल
लाल डण्डी ।।2।।
अणी
शहर का राजा भारी,
कोण
पुरूष इमे कुण है नारी।
पांच
पखावज तीन तबलची,
नाच
रही रण्डी ।।3।।
इसी
भजन का अर्थ बतावो,
साज
बाज यांही धर जावो।
कहत
कबीर सुणो भाई साधू,
हट
जा पाखण्डी ।।4।।