बाप जी निकलंक नेजा धारी,
दुख काटण पर उपकारी ।
सिमरत बाता सारो रामदे,
निकलंक नेजा धारी ।।टेर।।
अलख जोत अजमल घर जागी,
सिंवरे दुनिया सारी ।
पीर पदवी परचा सूं पाई,
कर हो कृृृृष्ण मुरारी ।।1।।
तू निकंलक निरंजन निझारी,
भक्त भाव दे धारी ।
सही राम संता रा तारण,
सुध बुध देवण सारी ।।2।।
राम रामदे तू रावण रिफु,
पाणी पर पत्थर तारी ।
सही समन्द में बोयतो तारयो,
राक्षस कियो बस भारी ।।3।।
ठाम ठाम थारे धाम धर्म री,
अमर कला अवतारी ।
जुगत भली कर भक्ति हलाई,
कुदरत पर बलिहारी ।।4।।
एक मन पूज एक कर जाणी,
इय आवणी अवतारी ।
उणत मेट पूरवो आशा,
अजमल सुत अवतारी ।।5।।
कीरत करु करो मोय कृपा,
मैं मानव मल धारी ।
कहे लिखमी महाराज दया कर
पीर जी भली विचारी ।।6।।