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सारी तो सृष्टि का शंकर सुत देवा कारज तुम सारो sari to srishti ka shankar sut deva karaj tum saro



सारी तो सृष्टि का शंकर सुत देवा,

 कारज तुम सारो।।टेर।।


कारज सारो सृष्टि का सजी हो,

शंकर सुत देव गणपत।

तीन लोक के मायने सजी करे,

मुनि जन सेव गणपत।

करे मुनि जन सेव देव और दाहिना,

त्रिलोकी के माय रिया नहीं सायना।।1।1


एक समय नल भूपरा का,

छूट गया था राज गणपत।

दमयन्‍ती गणपत ने सिवर्या,

सर्या मनो‍रथ काज गणपत।

सर्या मनोरथ काज भूप नल उबर्या।

नरवरगढ़ के माय राज फिर से कर्या।।2।।

 

जान चढ़ी श्रीकृष्‍णचंद्र की,

 कुनणापुर मांय।

देख रूप विकराल राज का,

ले गिया जान में नांय।

ले गिया जान में नांय शरम का मारिया,

मुसा खोदी भोम क जादव हारिया।।3।।


ब्रह्माजी सृष्टि रचाई,

पेली तुझे मनाया गणपत।

शिवशंकर का लाड़ला जी,

कोई पार्वती का जाया गणपत।

पार्वती का जाया काज सब सारिया,

ध्‍याया ज्‍यांरा का बेड़ा पार उतारिया।।4।।


ओछी पिण्‍डीया दूंद दुदियालाे,

भाल तिलक चमकन्‍त गणपत।

रिद्धि सिद्धि राणी ऊबी टेल में,

निसदिन चंवर ढुलन्‍त गणपत।

निसदिन चंवर ढुलन्‍त क हाजर टेेल में,

लच्‍छीराम पर कृपा करज्‍यो खेल में।।5।।





जल ज‌इयो जिह्वा पापनी राम के नाम बिना रे JAL JAIYO JIVHA PAPNI RAM KE NAAM BINA RE

राम के नाम बिना रे मूरख  राम के नाम बिना रे, जल ज‌इयो जिह्वा पापनी, राम के नाम बिना रे ।।टेर।। क्षत्रिय आन बिना, विप्र ज्ञाण बिना, भोजन मान ...