साधू जो मिलिया सो कूड़ा,
मिलिया न गुरू का पूरा।।टेर।।
कण्ठी बांधी नाम सुनाया,
गुरूजी ने चेेेला मण्डाया।
आप गुरू कुछ खोज्या नाहीं,
चेला शब्द नही ढुंढया।।1।।
भगवो पहर खाक रमावे,
माथे तिलक सिन्दूरा।
माया मोह लिया संग डोले,
काम क्रोध में पूरा।।2।।
पढि़या वेद पुराणा बांचे,
एलम में भरपूरा।
नाम अक्षर की खबर न जाणे,
पंडीया रह्यो अधूरा।।3।।
निर्गुण सगुण बाणी गावे,
बजावे ताल तन्दूरा।
ज्ञानी होय कर ज्ञान दीठावे,
माया तना मन्जूरा।।4।।
अनाहद गाजे सिवर बिराजे,
सो ही सन्त है पूरा।
कहे ''लिखमा'' मैं उन सन्तन का,
खिदमतगार हजूरा।।5।।