स्वांस स्वांस में साधलो,
निगे करो निज नांव।
भजन भूलि भोन्दू फिरे,
लिखमा चौरासी रा ठांव।।1।।
राम नाम लेता रहो,
गुरू दिया विश्वास।
भवसागर को भय मिट्यो,
कहवे लिखमीदास।।2।।
राम नाम निज धार के,
मन राखो विश्वास।
भवसागर से जे तिरे,
कहे बन मालीदास।।3।।
राम नाम सदा लेते रहो,
स्वासो स्वास लिव ल्याय।
कह लिखमा निज नांव से,
बेड़ो पार लग जाय।।4।।
::दोहा::
मन चंचल मन लालची,
मन होय राव अरू रंक।
जब लगी मन हरि सूं मिले,
हरि मिलेंगे निसंक।।1।।
मन मारग हाले नहीं,
उजड़ दोड्यो जाय।
कह लिखमो फिर,
हरि यो कैसे मिलसी आय।।2।।
मनवा तो सब जानत,
औगुन करे हजार।
जान बुझ औगुन करे,
कैसे मिले करतार।।3।।
मन पीछे न चालिए,
मन है एक प्रहार।
कह लिखमो गुरूकृपा से,
हुवा मन पर अस्वार।।4।।