गणां सांचला रीजो मारा भाया,
कहूं ब्यावला की बात।
लज्या धर्म ने मती छोड़ज्यो,
धणी मारो आता आता है।।टेर।।
धनरखजी के घर कन्याबाई जनम्या,
रूप और अरूप हेग्या माता और पिताजी।
सील संतोष मल सगपण कीदो,
मांगेती बणता नकलग दाता।।1।।
भाव प्रेम मल ब्यावलो रचायो,
कांकण डोरड़ा बांधे हर हाथ।
चार दना का धणी चार जुग कीदा,
परणबा पधारे कलजुग।।2।।
तीन गुणा का सागा तीन आगे तार्या,
पूर्ण संत पंथ पाया और पेता।
इक्कीस करोड़ जानिया आगे जाय ऊबा,
बारा करोड़ आवे मारग बहता।।3।।
इक्कीस करोड़ जोड़ छाछट भेला,
बावन पदम दल जान में आता।
अरब मीन शंख एक कम दो सौ,
अरब खरब नन्यानवे में आता।।4।।
सोना के सेवरे बन्ना परणबा पधारे,
सोना का सरपाव धन सेर लेन आता।
हर इच्छा भोजन बण जाता,
जानिया ने जीमावे गणेश भण्डारी रिद्ध सिद्ध
दाता।।5।।
सोना के सेवरे परणबा पधारे,
तोरण बांधे चेतलो कुदाता।
तोरण बांध बन्नो चंवरिया में जावे,
सुर नर साधू मंगल गाता।।6।।
पडलो परि अम्बा चंवरिया में बैठी,
भवानी पर माता भायड़ा की माता।
हर हथलेवे धणी मेघड़ी परणेला,
जानीवासे जावे बन्नो बाजा बजाता।।7।।
श्याम सुन्दरी सैजा में भेला,
महाधर्म रचे माडेणो जी।
गोविन्द नाम हरि रंग मीठा,
प्रेम का प्याला परवाणी साथ पीता।।8।।
राई की चौथाई वस्तु ऊंची खेची पाई,
सरोदा की बंध कर शिखर में चढ़ाई।
कर्यो हिसाब जीकी जोड़ लगाई,
सवा सताईस मण पक्के तोल आई।।9।।
जान में आया जो तो अमरापुर पाया,
आवगमन जूण फेर नहीं आता।
फूलां का बिछावण हिगलोट में हिन्दे,
परवाणी साध सदा ही सुख पाता।।10।।
हद ने छोड़ धणी बेहद में पूंगा,
रूप तो अरूप वेग्या माता और पिता।
दूध भेला दूध मलग्या दो न दरषे,
मलगी सायर बूंद और सत्ता।।11।।
पदमगरू माने परवाणी दीदा,
लाडूरामजी मारे नूता लखता।
गुजर गरीबो कनीरामजी बोले,
ब्याव में उमाई सुन्दर सुरता।।12।।