अलख लखी इतबार कर,
देखो अवसर आया,
सोजो रे माया।।टेर।।
पांच तत्व गुण तीन सूं,
काया नगर बसाया।
किया नव दरवाजा दीसता,
दशवां सन्त जब पाया।।1।।
सब रंग सक्त बणाय कर,
आसा ओप चढ़ाया।
आठ कर्म का कोट में मांझी,
मोहर आया।।2।।
पांचो स्वादण शहर में,
जिनमें मन भरमाया।
भांज भर्म बस पांच करि,
नव द्वारा ठम ठाया।।3।।
आवे स्वांस मिले मन मांही,
जगत ठगाया।
ज्ञान गरीबी का गोख में,
सन्त सभी सुख पाया।।4।।
रहता राम पुरूष के मांही,
सो सब मांही समाया।
सर्वज्ञी समदृष्टि में,
खोज्या जहां उसको पाया।।5।।
बुद्धि दर्पण में देखत,
दरस्या हरि राया।
''लिखमा'' अलख अरूप है,
सत् शब्द समाया।।6।।