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अभिमान बड़ो मूढ़ ढींग है लाग्‍यो सबके लारी abhimaan bado mudh dhing hai lagyo laari



अभिमान बड़ो मूढ़ ढींग,

है लाग्‍यो सबके लारी।

बच्‍या सन्‍त कोई सूरवां,

जिन देह अभिमान निवारी।।टेर।।


काम क्रोध लोभ मोह,

संग में लीन्‍हां चारी।

ज्ञानी को ज्ञान मिटाय के,

कर डारे संसारी।।१।।


दुनिया का ठहरया,

छलिया छत्र धारी।

कवियां के केड़े लग्‍या,

पकड़या पण धारी।।२।।


पकड्या काजी पिण्‍डत,

बड़ा बड़ा ब्रह्मचारी।

पीर ओलिया लग पहुंचियाेे,

ऐसो है बलकारी।।३।।


खट दर्सण में खटकियो,

करता खलक खंबारी।

सिद्ध साधक सब सोधिया,

दुनिया कौन विचारी।।४।।


सुर नर पति असुरापति,

तीन लोक मंझारी।

बच्‍या नहीं अभिमानते कोई,

जे जीवन तन धारी।।५।।


पांच तत्‍व गुण तीन में,

देहा दिक सारी।

इनके परे सुद्धि आत्‍मा,

व्‍यापक निराधारी।।६।।


पांच तीभ कूं त्‍यागीयो,

नहीं अभिमान लिगारी।

''लिखमा'' लखे सोदी आत्‍मा,

जिनकी मैं बलिहारी।।७।।

जल ज‌इयो जिह्वा पापनी राम के नाम बिना रे JAL JAIYO JIVHA PAPNI RAM KE NAAM BINA RE

राम के नाम बिना रे मूरख  राम के नाम बिना रे, जल ज‌इयो जिह्वा पापनी, राम के नाम बिना रे ।।टेर।। क्षत्रिय आन बिना, विप्र ज्ञाण बिना, भोजन मान ...