माने-माने लोग की बात,
लुगाई वांने कहवे॥टेर॥
कोशिक ब्राह्मण भारी पण्डित,
करे तपस्या बन में।
बड़ला के नीचे जा बैठो,
वेद पढ़ रियो मन में।
कहवे कहवे धर्म की बात
लुगाई वाने॥1॥
बड़ला ऊपर बगली बैठी,
कर रही विश्राम।
बामण ऊपर पीट कीदी,
अणजाण्या को काम।
बामण दीदी बड़ला के
लात॥2॥
बुरो सोच्यो बगली को,
और आख्या कीदी लाल।
धरती पर आकर पड़ी,
भसम हुई तत्काल।
पण्डत मन ही मन पछतात॥3॥
भीख मांगबा गयो गांव में,
मन में रियो पछताय।
भिक्षा मांगे भला घरा में,
जाकर अलख जगाय।
ठहरो भिक्षा लाऊ मैं हाथो हाथ॥4॥
एक लुगाई घर माये,
रही ठावड़ा मांज।
यो काम निपट्या पछे,
देऊ बामण ने नाज।
घरे आयो लुगाई को नाथ॥5॥
भूखा तस्या आया पति की,
सेवा करबा लागी।
बामण देव ने भूल गई,
और भोजन लेकर आगी।
दोनू जीम रिया है भात॥6॥
भिक्षा देबा ने चाली लुगाई,
मन में कुछ शरमाई।
न देणो तो जट नट जाती,
थू गणी देर से आई।
आखिर थू है लुगाई की जात॥7॥
पतिदेव की सेवा छोड़ के,
कैसे भिक्षा लाती।
बामण का परभाव न जाणे,
थोथा गीत क्यू गाती।
मने बगलो समझ रिया तात॥8॥
गरभ गलग्या बामण का,
पडियो पगा में जाय।
पतिव्रता की महिमा ने,
भैरूलाल कह गाय।
थे भी मानो धर्म की बात॥9॥