आई म्हानेे संत शब्द इकतारी,
हे हरि एक एक कर जाणो,दीसे दुबधा न्यारी ।।टेर।।
ओमकार अटल अण्घड़,
सत सोहू माया थारी ।
माया का विस्तार ब्रह्म बिच,
रचना कुदरत थारी।।1।।
माया में मोह रहता हैै,
हो अला ओमकारी।
व्यापक ब्रह्म भर्म सूं भूला,
सो कर्म अधिकारी ।।2।।
मच्छ कच्छ हूवो तूही,
हरि बारा तू नरसिंह नखधारी।
बाबन होय बलद्वार पधारियो,
परशराम अवतारी।।3।।
राम अवतार हुयो तू राघव,
धन छलियो कलाधारी ।
तूही कृष्ण रणछोड़ द्वारका,
गोविन्दो गिरधारी ।।4।।
कलयुग दसवी कला पूजाई,
हुवा रामदेव छत्रधारी।
थे निकलंक होय सो नारायण,
कर कालिंगा पर त्यारी।।5।।
बुध अवतार ओलखियो बुध से,
सत् असत् शब्द विचारी।
से समदृष्टि साधु बड़भागी,
दुतिया मिटही यारी।।6।।
सिद्ध साधक संता सब सिवरे,
जीव ज्यां जोत तुम्हारी।
तुम सर्वगी सब में बोले,
जड़ चेतन जग सारी।।7।।
धर विश्वास सांच संग सिद्धा
सन्त अनन्त विचारी।
सो विश्वास फल अब लिखमा जाणे,
जीस्यो हरि त्यारी।।8।।