गुरूदाता मैंने अवगुण बहुत कियो।।टेर।।
कतराई पांव दाता धरिया धरणी पर है।
पग पग पाप कियो ।।1।।
पेला की नार दाता,नैणा से नरखी है।
मनसा रा पाप कियो।।2।।
भरिया समन्द की दाता, पालां
जो फोड़ी है।
मनवा ने मार लियो ।।3।।
बैठोड़ी गऊ के वो दाता,
ठोकर मारी है।
मोहरा न
मार लिया।।4।।
पाप कपट की दाता,बांधी गठडिया है।
सिर पर बोझ धर्यो।।5।।
कहत कबीर सुणो भाई साधू।
सतगरू पार कियो।।6।।