मारा सतगरू सा फरमाया सा,
बोलो राम राम।।टेर।।
सतगरूजी ज्ञान सुणायो,
सब भ्रम अज्ञान मिटायो।
वो सब घट एक समायो सा,
बोलो राम राम ।।1।।
रूप रेख नहीं रंगा,
जिन हाड़ मांस नहीं अंगा।
अविगत अखे अभंगा सा,
बोलो राम राम।।2।।
वो बिन नेना से निरखा,
हे बाहर भीतर सरीखा,
नारी नहीं कोई पुरषा सा,
बोलो राम राम।।3।।
सात दीप नौ खण्डा,
चवदा लो ब्रहमण्डा।
नित अधर फरूके झण्डा सा,
बोलो राम राम।।4।।
गुण गावे नित ‘दानो’
यह सही वचन सत मानो।
सतगरूजी ने ईश्वर जाणो सा,
बोलो राम राम।।5।।