अब मेरा भाग पुरबला जागा रे,
अब मेरा भाग पुरबला जागा।
सतगरू पकड़ खेंच कर लीना,
आनन्द घर में आगा।।टेर।।
परथम सतगरू कृपा करके,
तोड्या तिरगुण तागा।
लक्ष ज्ञान बताकर मेट्या,
दसहूं दोष को दागा।।1।।
अनुभव वाज लगाकर कडक्या,
सूता ओजक जागा।
जाजवल्य जल सूं जगत समझ कर।
छोड़ किनारे लागा।।2।।
जीव सृष्टि का बाद कराकर,
तजिया राग दुरागा।
ईश्वर सूष्टि अकथ अगम को,
सामल रहकर त्यागा।।3।।
जीव अविद्या त्याग ब्रह्म में,
मिलता ही दो पन भागा।
गरू शीतल से शंकर पाया,
न अक्षर ज्ञान अथागा।।4।।