।।दोहा।।
और ज्ञान सब गोलिया,ब्रह्म ज्ञान सो ही ज्ञान ।
जैसे गोला तोप का,तोड़ करे मैदान ।।
फकीरी ब्रह्म ज्ञान सोही
ज्ञान,
और ज्ञान माया में नाना,
जिनको मिथ्या जाण ।।टेर।।
नहीं कोई सांच झूठ वा माही,
वो आदी पुरूष अदेख ।
इच्छा कर बहु भाव दिखावे,
आप निरन्तर एक ।।1।।
माया सब चेतन के आसे,
उपजे मिटे हमेश ।
चुम्बक अचल चले सो लोहा,
यो जड़ चेतन देख ।।2।।
चेतन अखै सभी खै माया,
यह निज कहिये विवेक ।
आप सदा है ज्यूं का त्यूं ही,
जहां नहीं माया रेख ।।3।।
प्रमाण अप्रमाण जहां नहीं
माया,
नहीं कोई एक अनेक ।
बनानाथ सोई निज चेतन,
नहीं कोई भेख अभेख ।।4।।