ऐसा मेरा सतगरू देश दिखाया समरथ सांच लिखाया aisa mera satguru desh dikhaya samrath saanch likhaya

 

ऐसा मेरा सतगरू देश दिखाया,

कर कृपा सतगरू निज स्‍वामी,

समरथ सांच लिखाया।।टेर।।

 

हरकू हटक अटक जम जालम,

गुण इन्द्रियन कू ढ़ाया।

नव तत परे निरख्‍या निरगुण,

आप स्‍वरूपी थाया।।1।।

 

दरस्‍या देव प्रेम सूं प्रीतम,

अमरण अजर अजाया।

समता सहज रमज माही रहता,

नहीं कोई गया न आया।।2।।

 

कैसे कथू अकथ भई मालम,

वचन परे थिर थाया।

दिष्‍ट न मुष्‍ठ लघु दीरग ना‍ही,

जहां कोई धूप न छाया।।3।।

 

जियाराम मल्‍या गरू पूरा,

अधर दलीचा आया।

कहे बनानाथ सुणो भाई साधू,

अबके मुजरा पाया।।4।।

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