साधू भाई सबद गुरां का बंका।
ज्ञान ध्यान के ऊपर लागा,
निरभय नगर का डंका।।टेर।।
आपा दरस्या निज को परस्या,
भेद नहीं रंच जंका।
आप बिना कोई और न दरस्या,
नहीं उत्तर नहीं शंका।।1।।
अनुभव डंका बाजत बंका,
निर्भय निशाण निशंका।
द्वेत अद्वेत की गति विलानी,
समता राव रूरंका।।2।।
कर्म भ्रम संशय अविद्या में,
जली समूली लंका।
लेश कलेश प्रपंच न भारो,
नहीं त्रिगुण का पंका।।3।।
सच्च्दिानन्द अनूप अखण्डी,
व्यापक निर्गुण अंका।
रामप्रकाश परमानन्द पूरण,
अधर सधर में टंका।।4।।