थारे मनख जनम की मोज,
बावला काहे को घाटो।।टेर।।
रणभूमि में जाय,
सूरमा पाछो कई नाटो।
सत का ससतर ढाब हाथ में,
शीश भलाई भाडो।।1।।
घर की खेती भारे बावला,
करे सीर साटो।
सिजारा में लाभ नहीं रे,
आदो आवे बांटो।।2।।
घर में धान मोकलो भरयो,
पाव नहीं आटो।
कोइ दाण का आवे पावणा,
कई गाले भाटो।।3।।
रामहंस ने आवत देख्या,
गोकलदास नाटो।
जा चरणां में शीश नवायो,
सबद लियो साठो।।4।।