सन्तों भगती सतगरू आनी,
नारी एक पुरूष दो जाया,
बूझो पंडित ज्ञानी।।टेर।।
पत्थर फोड़ गंगा एक निकली,
चहुं दिस पाणी पाणी।
वां पाणी से दो पर्वत डूबे,
दरिया लहर समानी।।1।।
उड़ माखी तरवर को लागी,
बोले ऐके बाणी।
वां माखी के माखा नाहीं,
गर्भ रहा बिन पाणी।।2।।
नारी सकल पुरूष वे खाये,
ताते रहे अकेला।
कहे कबीर जो अबके बूझे,
सोई गुरू हम चेला।।3।।