आप ताे अरूप हेली,
रूप बण्यो माया जाल ।।टेर।।
सूरत शब्द मल हेलो पाड्यो,
सुन चेतन में आण।
माया मेंटू ब्रह्म भेंटू,
अड़गड़ की करू ओलखान।।1।।
दस दरवाजा बन्द कर देखो,
माया बाहर जाण।
रूम रूम में रमती भलगी,
भीतर बैठी है तम्बू ताण।।2।।
नाभ कंवल के गांठ लगाले,
पावण ऊंचो ताण।
जोय पलीतो जपके चढ़गी,
नीची पड़ी घुड़ आण।।3।।
इला पिंगला सोध सुखमणा,
पांचू तंत पछाण।
मूं जाणू माया मटगी,
माया का फडूकरिया निशाण।।4।।
माया छालो बहुत उजालो,
सोहनी शिखर दीवाण।
मूं तो जाणू पूंगग्या,
पूंगता ने लीदा ताण।।5।।
आंख भींच उनमुनी ने हाजे,
गाठा भींचे कान।
झीणी ज्योति मोत्या जैसी,
माणका का मड्या है मंडाण।।6।।
अनहद भेद भेद के आगे,
माया मटी रेमाण।
गुजर गरीबो 'कनीरामजी' बोले,
मटगी खेंचा ताण।।7।।