फकीरी अनुभव किया विलास,
जांके आठों ही पहर हुलास
।।टेर।।
फकड़ होय माया को त्यागे,
कौड़ी न राखे पास ।
मन मूरख री तरंग मिटावे,
करे विषयों का नाश ।।1।।
सब से मता फकड़ रा न्यारा,
नहीं जगत री आश ।
आत्म चिन्ह अभय पद पाया,
नहीं स्वामी नहीं दास
।।2।।
वो फकड़ो री गम अगम है,
नहीं कोई सोहं स्वांस ।
अजपा सुरत नुरत नहीं
पहुंचे,
नहीं कोई सुन्न प्रकाश
।।3।।
लक्ष्मणगिरी गुरू पूरा
मिल्या,
दिया परवाणा खास ।
मंगलगिरी गुदडियो बोले,
शुद्ध स्वरूप में बास
।।4।।