प्रभुजी तुम हो भक्तो के रखवारे।।टेर।।
हिरणाकुश ने चाबुक मारा,
भक्त प्रहलाद ने नाम उचारा।
नरसिंह होकर देत्य पछाड़ा,
देवन के दुख टारे।।1।।
मात वचन हरदे धर लीना,
ध्रुव ने जा वन में तप कीना।
गरूड़ चढ़े प्रभु दरसन दीना,
अंत बैकुण्ठ सिधारे।।2।।
द्रुपद सुता की लाज बचाई,
गोतम नारी विपत मिटाई।
शबरी की महिमा अधिकाई,
गज के बन्द निवारे।।3।।
जो जन नाम तुम्हारा गावे,
सो निश्चय निरभय पद पावे।
ब्रह्मानन्द नित अर्ज सुणावे,
कीजिये भव जल पारे।।4।।