गरू सायब का दरबार में,
सतुकार मिलेला कांई सा।
सतुकार मिलेला कांई सा,
रणुकार मिलेला कांई सा।।टेर।।
सतगरू मिल जावे कामी,
कमद्या में पाड़ो मती खामी।
जाने समझो अन्तरयामी,
श्री किशन मानलो कांई सा।।1।।
सतगरू मिल जावे लोभी,
तन मन अलप दियो तो भी।
तन का मालिक है वो भी,
श्री बावन मान लो कांई सा।।2।।
सतगरू मिल जावे क्रोधी,
खुद मत राखो विरोधी।
जाने समझो आप सरोदी,
नरसिंग मान लो कांई सा।।3।।
सतगरू मिल जावे धर्मी,
ब्रह्म ज्ञान का मर्मी।
वे तारे जीव कुकर्मी,
वांने श्रीराम समझ लो कांई सा।।4।।
पदम पुराण में शाखा,
या भगतमाल में भाखा।
यू ‘हीरारामजी’
ने भाखा,
वांने सही मान लो कांई सा।।5।।