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साधू भाई चार वाणी लख गाई कर निर्णय महरम कहूं सांचा sadhu bhai char vani lakh gaai kar nirnay mahram kahu saancha

 

साधू भाई चार वाणी लख गाई,

कर निर्णय महरम कहूं सांचा,

सतगरू राह लखाई।।टेर।।

 

नाद भेद चारो लख बाणी,

बीज परा दरसाई।

होय अंकुर पश्‍यन्‍ती जागे,

बढ़े वृक्ष गत आई।।1।।

 

दोय पात मध्‍यमा पूर्ण,

बेखरी डाल खेलाई।

डाल में बीज बीज में तरवर,

अरस परस गम लाई।।2।।

 

प्रथम संकल्‍प नाभी कंवल में,

परा ओम में थाई।

हृदय पश्‍यन्‍ती सोहं विचारे,

ज्ञान ध्‍यान ठहराई।।3।।

 

कण्‍ठ मध्‍यमा मनन करत,

निश्‍चय कर परखाई।

मुख में बेखरी श्रवण,

अक्षर उचार कराई।।4।।

 

गरू महिमा उपदेश स्‍तुति,

सोई बेखरी छाई।

गुरू शिष्‍य प्रश्‍नोतर जामे,

मध्‍यमा सो फरमाई।।5।।

 

सांख्‍य कहे व्‍यापकता मैं हूं,

सो है पश्‍यन्‍ती बाई।

हूं तू नहीं ब्रह्म अद्वेता,

सो पद परा अचाई।।6।।

 

तुरिया रूप है वाणी चारो,

भेद भाव विसराई।

रामप्रकाश संत कहे ज्ञाना,

लखे जिज्ञासू भाई।।7।।

जल ज‌इयो जिह्वा पापनी राम के नाम बिना रे JAL JAIYO JIVHA PAPNI RAM KE NAAM BINA RE

राम के नाम बिना रे मूरख  राम के नाम बिना रे, जल ज‌इयो जिह्वा पापनी, राम के नाम बिना रे ।।टेर।। क्षत्रिय आन बिना, विप्र ज्ञाण बिना, भोजन मान ...