जब जब भीड़ पड़ी भगता में,
आप लियो अवतार।
सांवरिया की लीला ऐसी है अपरम्पार।।टेर।।
जी सायब ने सृष्टि रचाई,
वो सायब सब के माई।
एक पलक में खलक रचाया,
उनका कोई अतबार नहीं।
आपू थापे आपू ही उथापे,
ओरां की माने नाही।
बेमुख होकर अरजी करता,
वा अरजी सुणता नाही।
अरजी के ऊपर मालिक रहता,
अपने आप आधार।।1।।
नेम करे कोई धरम करे,
कोई तीरथ को जाता भाई।
तरह तरह की देख मूरता,
अकल कियो माने नाही।
जल पत्थर की है सब पूजा,
और देव दरसे नाही।
मनोकामना पूरण करता,
ऐसा है समरथ सांई।
जड़ चेतन में बाहर भीतर,
व्याप रिया एक सार।।2।।
ज्ञान करे कोई ध्यान करे,
कोई उलटा पवन चलाता है।
दस इद्रियो का दमन करके,
प्राणों में प्राण मिलाता है।
खेचर बूचर अगम अगोचर,
कोई उनमुन को धाता है।
चांद सूरज का साज सरोदा,
एकण घर में लाता है।
पड़ा पड़ा कोई खड़ा खड़ा,
कोई हरदम रेहवे होशियार।।3।।
पांचों इन्द्री पांचों प्राण,
वांके बन्ध लगाता है।
मुनि होकर मुख नहीं बोले,
सेनी में समझाता है।
गड जाता कोई उड़ जाता,
कोई अगनी में जल जाता है।
हजार बरस की देहि राख लेवे,
तो ही भेद
नहीं पाता है।
आठ पहर चौसठ घड़ी में,
लाग रियो एक ही तार।।4।।
जोगी होकर जटा बढ़ावे,
पगा अबाणा चलता है।
षटरस भोजन हरदम जीमे,
लुका भोजन नहीं खाता है।
शिष्य उनका कहना नहीं माने,
बुरी तरह चिल्लाता है।
बूढ़ा हिया जद रोग सताता,
पड़ा पड़ा दु:ख पाता है।
पाखण्डी परला में जावे,
जदी लेवे अवतार।।5।।
ज्ञान ध्यान मैं कुछ नहीं जाणू,
संत की सेवा करता भाई।
आप जुगत मुगत के दाता,
उबार लो चरणां माई।
तीन लोक में हुकम आपका,
और पता हिलता नाही।
आप बिना कुण सुणता मेरी,
और देव दरसे नाही।
आदूदास की या ही वीणती,
बेड़ा लगा दीज्यो पार।।6।।