करलो चरण कमल का ध्यान,
ज्ञान गरू गम से पाया है।।टेर।।
ऐसा सतगरू शब्द सुणाया,
तन मन तरपत कर दी काया।
समझा कर सूता जीव जगाया,
मन का दुतिया भाव मिटाया।
गरू जगत को तारण आया है।।1।।
सुरता सिमरण में धुन लागी,
नागण नाभ कंवल में जागी।
वो तो बड़ा बड़ा ने खा गी,
उनको मारे कोई संत बड़भागी।
पवन नाभी पलटाया है।।2।।
उतर्या तरबिणी की घाटी,
तां पर त्रिगुण त्राप मिटादी।
भंवरा त्रकुटी में डारी,
पुरूष को दर्शण पायो।
समाधी ज्ञान लगाया है।।3।।
वहां से अमृत धारा छूटी,
वस्तु मोल अमोलक लूटी।
वामे फरक रती नहीं झूठी,
पुरूष अमर केवायो है।।4।।
वहां नहीं चांद सूरज दिन राती,
जल रही अखण्ड जोत बिन बाती।
कर रही पिया से वो बाती,
अखण्ड जोत प्रकाशी।
सुरता नुरता नाच नचाया है।।5।।
गोविन्दराम बलिहारी,
मनसा पूरण करदी मारी।
आदूदास सुमरण में धुन लागी,
निरभे सुख सागर न्हाया है।।6।।
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