राजपाट तज बण गयो जोगी या कई दिल में धारी rajpat taj ban gayo jogi ya kai dil me dhari

 

राजा भरतरी से अरज करे,

महलों में खड़ी खड़ी राणी।

राजपाट तज बण गयो जोगी,

या कई दिल में धारी।।टेर।।

 

नगर उजिणी को राजा भरतरी,

हो घोड़े असवारी।

एक दिन राजा दूर जंगल में,

खेलण गया रे शिकारी।।1।।

 

बिछड़ गये मोरे रंग के साथी,

राजा भया रे लाचारी।

किस्‍मत ने जब करवट बदली,

छूट गया घरबारी।

होणहार टाली न टले,

समझे न दुनिया सारी।।1।।

 

काला सा एक मृग देखकर,

तीर बाण कर मारा।

तीर कलेजे तीर लगा जब,

मृगा ने हा हा पुकारा।

 

व्‍याकुल होकर हरणी बोली,

हे पापी हत्‍यारा।

मृगा के साथ सती मैं होऊंगी,

ऐसे नाथ पुकारा।

रो रो कर फरियाद करे,

घबराए राजा ज्ञानी।।2।।

 

राजा जंगल में रूदन करे,

गुरू गोरखनाथ पधारे।

मृगा को जान देकर तपसी,

राजा का जन्‍म सुधारे।

 

उसी समय राजा ने अपने,

राजसी वस्‍त्र उतारे।

गुरू मंत्र से बण गया जोगी,

अंग भभूती रमाई।

घर घर अलख जगाता फरे,

बोले मधुर बाणी।।3।।

 

गुरू गोरख री आज्ञा भरतरी,

महलूं में अलख जगाता।

भर मोतियन की थाल लाई,

दासी लेलो जोगी जुगदाता।

 

माणक मोती क्‍यो लाई दासी,

चून की छमटी लाता।

भिक्षा लूंगा जब जोली में,

आयेगी राणी और माता।

राणी के नैणो में नीर भरा,

पिया जी की सुरता पछाणी।।4।।

 

हे निरमोही दया न आई,

छोड़ चल्‍या रजधानी।

मैं समझा रही तोहे पियाजी,

मेरी एक न मानी।

 

बाली ऊमर नादान नाथ मेरी,

कैसे कटे जिन्‍दगानी।

भेस छोड़ कर राज करो राजा,

यूं बोले प्रेम की बाणी।

अन्न धन का भण्‍डार भरा है,

खूब करू मजमानी।।5।।

 

तमक चाल की भोली दुनिया,

जैसे बहता पाणी।

अमर नाम मालिक का रहेगा,

थोड़ा समझ अज्ञानी।

 

भजन करो भव सिन्‍धु तरो,

कट जावे लख चौरासी।

नत नई रंगत गावे महादेवजी,

फेर जनम नहीं पासी।

हरि का भजन करता रहे,

प्राणी दो दिन की जिन्‍दगानी।।6।।




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