मन रे गरू वकील बण आवे।
लख चोरासी का कागज फाड़े,
मुकदमा जितावे।।टेर।।
कुकर्म जो खोटा अपना कहिये,
जा गरूदेव ने सुणावे।
जब कृपा हुई सतगुरू की,
सभी गुनाह बख्सावे।।1।।
चोर चोरी नहीं प्रकटे,
जम आपू प्रकटावे।
धर्मराज सब खाता खोले,
हाकम न्याव सुनावे।।2।।
सतसंग कचेड़ी कट जावे बेड़ी,
संत यूं साखा भरावे।
देवे नेम,टेम से पालो,
यो डाव फेर नहीं आवे।।3।।
गोकल स्वामी अन्तरयामी,
भिन्न भिन्न कह समझावे।
लादूदास आस सतगुरू की,
भव जल पार लगावे।।4।।